गुरुवार, 8 जुलाई 2010

शीशे की सतह पर स्पिन कराने वाला


मुरली बिन कैसे सजेंगे सुर
लेग स्पिन के जादूगर ऑस्ट्रेलिया शेन वार्न 2007 में संन्यास ले चुके थे। करिश्माई भारतीय स्पिनर अनिल कुंबले ने 2008 में अन्तरराष्ट्रीय ष्टीय क्रिकेट को अलविदा कहा था और अब श्रीलंका के विश्व रिकार्डधारी ऑफ़ स्पिनर मुथैया मुरलीधरन के गाले टेस्ट के बाद संन्यास लेने के फैसले से इस स्पिन त्रिमूर्ति का युग समाप्त हो जाएगा। मुरली, वार्न और कुंबले टेस्ट क्रिकेट के इतिहास में न केवल तीन सबसे सफल स्पिनर हैं, बल्कि टेस्ट क्रिकेट में विकेट लेने में भी तीनों शीर्ष तीन स्थानों पर मौजूद हैं। मुरली 792 विकेटों के साथ चोटी
पर हैं, जबकि वार्न 708 विकेट के साथ दूसरे स्थान पर और कुंबले 619 विकेट के साथ तीसरे स्थान पर हैं।

अन्य कोई भी गेंदबाज अब तक 600 विकेटों के आंकडे के आसपास भी नहीं पहुंच पाया है। टेस्ट क्रिकेट इन तीन बेहतरीन स्पिनरों के करिश्माई प्रदर्शन से पिछले 20 वर्षों में टेस्ट क्रिकेट चकाचौंध रहा था और अपनी टीमों को बेहतरीन जीत दिलाने में इन तीनों की स्पिनरों की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी, लेकिन मुरली के संन्यास के साथ ही स्पिनरों की इस त्रिमूर्ति का एक युग वैसे ही समाप्त हो जाएगा जैसे एक समय इंग्लैंड के इयान बाथम, भारत के कपिलदेव, पाकिस्तान के इमरान खान और न्यूजीलैंड के रिचर्ड हैडली के संन्यास के बाद आलराउंडरों की चौकड़ी के एक युग का अवसान हो गया था। इन चारों आलराउंडरों के संन्यास के बाद क्रिकेट को फिर कभी इतने बेहतरीन आलराउंडर एक साथ कभी नहीं मिले। यही स्थिति स्पिन गेंदबाजी के साथ भी है। वार्न के संन्यास के बाद आस्ट्रेलिया आजतक उनका विकल्प नहीं ढूंढ पाया है, जबकि भारत में कुंबले का तो विकल्प दूर-दूर तक नहीं है। मुरली जैसे विश्व रिकार्डधारी गेंदबाज का विकल्प ढूंढ पाना तो और भी मुश्किल काम है।
इन तीनों स्पिनरों ने दो वर्ष के अंतराल में अपना टेस्ट करियर शुरू किया था और तीन वर्ष के अंतराल में तीनों ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से अपना संन्यास लिया। कुंबले ने हालांकि अपना टेस्ट करियर 1990 में शुरू किया था, लेकिन वार्न और मुरली ने अपना टेस्ट करियर एक ही वर्ष 1992 में शुरू किया था।
वार्न ने इन तीनों स्पिनरों में सबसे ज्यादा 145 टेस्ट खेले। कुंबले और मुरली अभी एक बराबर 132 टेस्टों पर हैं, लेकिन गाले में 18 जुलाई से भारत के खिलाफ होने वाले पहले टेस्ट में मुरली इस मामले में कुंबले से आगे निकल जाएंगे। तीनों स्पिनरों के रहते पिछले 20 वर्ष स्पिन गेंदबाजी का स्वर्णिम दौर था। वार्न की लेग स्पिन को खेलना जहां बल्लेबाजों के लिए टेढ़ी खीर बना रहता था, वहीं कुंबले की गुगली ने दुनिया के बेहतरीन गेंदबाजों को छकाया था। मुरली के लिए तो यह तक मशहूर था कि वह शीशे की सतह पर भी अपनी गेंद को स्पिन करा सकते हैं। हालांकि इन तीनों गेंदबाजों में सिर्फ मुरली ही मैदान पर विवादास्पद रहे। उनके गेंदबाजी एक्शन को लेकर बराबर सवाल उठते रहे और कई बार उनके एक्शन की जांच भी की गई, लेकिन हर बार
मुरली इस जांच से कुंदन की चमककर निकले और उन्होंने एक के बाद
एक विश्व रिकार्ड ध्वस्त किए। तीनों गेंदबाजों में अपने देश की कप्तानी करने का गौरव सिर्फ भारत के कुंबले के हाथों आया। वार्न तमाम योग्यता रखने के बावजूद कभी अपने देश के कप्तान नहीं बन सके, जबकि श्रीलंका ने मुरली को कप्तान के बोझ से बचाने के लिए उन्हें हमेशा इससे दूर रखा। मैदान में
ेये तीनों ही गेंदबाज एक दूसरे के अच्छे खासे मित्र थे और उनके बीच बीच बेहद स्वस्थ प्रतिद्वंद्विता रहती थी। मुरली के संन्यास पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए वार्न ने कहा कि 1980 के दशक में तेज गेंदबाजों का दबदबा रहा था, लेकिन उसके बाद मैंने, कुंबले और मुरली ने स्पिन गेंदबाजी को एक नई दिशा और सम्मान दिया, लेकिन अब मुरली के संन्यास के बाद स्पिन का एक युग समाप्त हो जाएगा। मुरली के इस फैसले के बाद गाले टेस्ट इतिहास का अचानक ही सबसे महत्वपूर्ण टेस्ट बन गया है। इस टेस्ट पर सारी दुनिया की नजरें टिकी रहेंगी, क्योंकि इस टेस्ट के बाद यह करिश्माई श्रीलंकाई आॅफ स्पिनर टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कह देगा, लेकिन क्या वह 800 विकेट के जादुई आंकडा हासिल कर पाएगा इस बात में भी सबकी पूरी दिलचस्पी रहेगी।